राष्ट्रमंडल संसदीय संघ के सम्मेलन में पारित किए 4 संकल्प, हरियाणा विधान सभा अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण ने सांझा किए संसदीय अनुभव | — चंडीगढ़, 13 सितम्बर

बेंगलुरु में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (सीपीए) के 11वें भारतीय क्षेत्रीय सम्मेलन का समापन शनिवार को हो गया। इस अवसर पर 4 संकल्प पेश कर पारित किए गए। इससे पूर्व हरियाणा विधान सभा अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण और उपाध्यक्ष डॉ. कृष्ण लाल मिड्‌ढा ने संसदीय परंपराओं और भविष्य की आवश्यकताओं पर अपने अनुभव सांझा किए। इस दौरान कल्याण ने हरियाणा विधान सभा में उनके द्वारा शुरू की गई पहलों का भी जिक्र किया।

शनिवार को पेश कर पारित किए पहले संकल्प में कहा गया कि लोकतांत्रिक संस्थाओं के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने के लिए सदनों के अंदर गतिरोध और व्यवधान को समाप्त किया जाना चाहिए। इससे हमारे सदनों में जन कल्याण के विषयों पर अधिक से अधिक चर्चा हो सकेगी।

दूसरा संकल्प अनुसंधान और सन्दर्भ शाखाओं पर केंद्रित रहा। इसमें कहा गया कि संसद के सहयोग से राज्यों की विधायी संस्थाओं की अनुसंधान और सन्दर्भ शाखाओं को मजबूत किया जाना चाहिए। विधायिकाओं में सभी महत्वपूर्ण विषयों पर एक व्यापक डाटाबेस बने ताकि हमारी विधायी संस्थाओं में चर्चा की गुणवत्ता और अधिक बेहतर हो सके।

तीसरे संकल्प में विधायी संस्थाओं की दक्षता में अपेक्षित सुधार के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी के अधिक से अधिक उपयोग पर बल दिया गया। इसमें कहा गया कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की कार्यवाही को जनता के बीच उचित रूप से ले जाना चाहिए। इससे विधायी संस्थाओं की दक्षता में सुधार के साथ-साथ इन संस्थाओं के प्रति जन-विश्वास और अधिक मजबूत होगा।

चौथा संकल्प युवाओं और महिलाओं की सहभागिता को प्रोत्साहित करने पर केंद्रित रहा। इसमें कहा गया कि हमारे देश की जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवाओं और महिलाओं का है। इसलिए लोकतांत्रिक संस्थाओं में उनकी और अधिक भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए विधायी संस्थाएं आवश्यक प्रयास करें।

इससे पूर्व हरियाणा विधान सभा अध्यक्ष हरविन्द्र कल्याण ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि विधानमंडल केवल ईंट-पत्थरों की इमारत नहीं बल्कि लोकतंत्र के मंदिर हैं, जहां जनता की सामूहिक आवाज़ गूंजती है। उन्होंने सम्मेलन के विषय ‘विधानसभाओं में बहस एवं विचार-विमर्श: जनता का विश्वास निर्माण और जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति’ पर अपना दृष्टिकोण साझा करते हुए कहा कि बहस और विचार-विमर्श केवल प्रक्रियाएं नहीं बल्कि लोकतंत्र की आत्मा हैं।