लोकसभा व विधानमंडलों की विभिन्न विषयों पर गठित कमेटियां एक लघु संसद की तरह करती हैं कार्य- लोकसभा के पूर्व संयुक्त सचिव रविंद्र गरिमेला

चंडीगढ़, 27 सितंबर- लोकसभा के पूर्व संयुक्त सचिव श्री रविंद्र गरिमेला ने कहा कि लोकसभा व विधानमंडलों की विभिन्न विषयों पर गठित कमेटियां एक लघु संसद की तरह कार्य करती हैं। इन कमेटियों के सदस्य सिर्फ सत्ता पक्ष के न होकर सभी पार्टियों के सांसद व विधायक होते हैं, जो विचारों की सहमति व असहमति के बावजूद भी सर्वसम्मित से निर्णय लेते है, जो कि लोक कल्याण के लिए कारगर साबित होते हैं।

श्री गरिमेला आज हरियाणा विधानसभा व लोकसभा की संविधान एवं संसदीय अध्ययन संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में चंडीगढ़ के सेक्टर-26 स्थित महात्मा गांधी राज्य लोक प्रशासन संस्थान में विधायी प्रारूपों एवं संवर्धन विषय पर हरियाणा विधानसभा व अन्य विभागों के कर्मचारियों व अधिकारियों के लिए आयोजित दो दिवषीय प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में बतौर विशेषज्ञ संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि इन समितियों में गहन अध्ययन, बहस और विचार-विमर्श के बाद ऐसे निर्णय लिए जाते हैं, जो लोक कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं के निर्माण में सहायक सिद्ध होते हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि समितियों का कार्यप्रणाली लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

उन्होंने कहा कि यदि संसद और विधानमंडल लोकतंत्र के मंदिर हैं, तो समितियां उसके स्तंभ के समान हैं, जो लोकतांत्रिक परंपराओं और मूल्यों को जीवंत रखती हैं।

*संसद द्वारा पारित तीन नए कानूनों का उद्देश्य है लोगों को शीघ्र और प्रभावी न्याय दिलाना- डा. असद मलिक*

नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के विधि विभाग के प्रोफेसर डॉ. असद मलिक ने संविधान और कानून निर्माण की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण विचार रखे। उन्होंने कहा कि हाल ही में संसद ने तीन नए कानून बनाए हैं, जिनका उद्देश्य लोगों को शीघ्र और प्रभावी न्याय दिलाना है।

डॉ. मलिक ने कहा कि भारतीय लोकतंत्र के तीन अंग हैं, जिनमें विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका शामिल हैं। इन तीनों की अपनी अलग-अलग भूमिका है। उन्होंने बताया कि विधायिका का दायित्व कानून बनाना है, कार्यपालिका का कार्य उन कानूनों को लागू करना है, जबकि न्यायपालिका की भूमिका उनकी व्याख्या और न्याय सुनिश्चित करने की होती है।

उन्होंने कहा कि यदि कानूनों को ईमानदारी और पारदर्शिता से लागू किया जाए तो आमजन को शीघ्र न्याय मिलेगा।

उन्होंने विधेयक मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया को संविधान के अनुच्छेद 14 के संदर्भ में समझाया और न्यायपालिका द्वारा की जाने वाली व्याख्या की प्रासंगिकता पर भी प्रकाश डाला।

डॉ. मलिक ने प्रशिक्षण शिविर में भाग ले रहे अधिकारियों व कर्मचारियों से आह्वान किया कि वे स्वयं भी कानून का पालन करने की जिम्मेदारी निभाएं, क्योंकि सशक्त लोकतंत्र का निर्माण तभी संभव है जब कानून का सम्मान समाज की प्राथमिकता बने।

*प्रशासनिक अधिकारियों को शक्तियों का नहीं करना चाहिए दुरुपयोग- डा. अनुराग दीप*

दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि विभाग के प्रो. डॉ. अनुराग दीप ने कहा कि विधायी लेखन विषय पर विधि के प्रमुख सिद्धांतों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों की कार्यप्रणाली चार मुख्य उद्देश्यों पर आधारित होनी चाहिए। इनमें शक्तियों का दुरुपयोग न करना, विवादों का निपटारा अधिकतम स्तर पर कार्यालय में ही करना, अधिकारों का व्यक्तिगत हित में दुरुपयोग न होना तथा अधिकारियों द्वारा जवाबदेही और जिम्मेदारी निभाना शामिल है।

डॉ. अनुराग दीप ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार के कानून निर्माण में भारतीय संविधान को सर्वोच्च माना जाना चाहिए। संविधान के सिद्धांतों की अवहेलना किसी भी स्थिति में उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि विधायी लेखन केवल नियमों का प्रारूप तैयार करना भर नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि वे आम नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें और प्रशासनिक व्यवस्था को पारदर्शी तथा प्रभावी बनाएं।

*प्रशासनिक अधिकारियों को नैतिकता व ईमानदारी के साथ लोक सेवक के रूप में करना चाहिए कार्य- पूर्व मुख्य सचिव केशनी आनंद अरोड़ा*

हरियाणा की पूर्व मुख्य सचिव श्रीमती केशनी आनंद अरोड़ा ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों को नैतिकता, ईमानदारी, निष्पक्षता व पारदर्शिता के साथ लोक सेवक के रूप में कार्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यही सुशासन की वास्तविक नींव है। हालांकि यह मार्ग कठिन होता है, लेकिन इसी से समाज और प्रशासन दोनों को स्थायी सफलता मिलती है।

उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार के प्रशासनिक ढांचे में हरियाणवी संस्कृति और मूल्यों की झलक अवश्य दिखाई देनी चाहिए। जनता को यह महसूस होना चाहिए कि अधिकारी उनके हितों को प्राथमिकता देकर कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों को प्रेरित करते हुए कहा कि यदि वे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ जनता की अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, तो सरकार और समाज के बीच विश्वास का सेतु मजबूत होगा।

श्रीमती अरोड़ा ने कहा कि प्रशासन की जिम्मेदारी केवल नीतियों को लागू करने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जनता के साथ आत्मीय संवाद और पारदर्शी निर्णय लेना भी शामिल है। उन्होंने अधिकारियों से अपेक्षा जताई कि वे अपनी कार्यशैली में मानवीय संवेदनाओं और स्थानीय संस्कृति को स्थान दें, ताकि सुशासन के प्रयास और अधिक प्रभावी बन सकें।